(समाचार4मीडिया प्रकाशित)
देश में जिस तेजी से वेब पोर्टल, यू-ट्यूब चैनल और सोशल मीडिया पर फर्जी खबरों के जरिये सांप्रदायिकता फैलाई जा रही है, उसे लेकर सुप्रीम कोर्ट ने गंभीर चिंता जताई है। एक मामले की सुनवाई के दौरान गुरुवार को कोर्ट ने कहा कि इस तरह की मीडिया पर कोई नियंत्रण नहीं है। वे अपनी पसंद की कोई भी चीज प्रकाशित-प्रसारित कर सकते हैं।
चीफ जस्टिस एनवी रमण की अध्यक्षता वाली तीन सदस्यीय पीठ ने कहा कि वह बिना किसी जिम्मेदारी के आम लोगों, जजों और संस्थाओं को बदनाम करने वाली खबरें चलाते हैं, लेकिन उनकी रिपोर्ट के आधार के बारे में पूछे जाने पर वे जवाब नहीं देंगे।
कोर्ट ने कहा कि यदि आप यू-ट्यूब पर जाते हैं तो पाएंगे कि वहां कितनी फर्जी खबरें और विकृतियां हैं? वहां कोई नियंत्रण नहीं है।
कोर्ट ने केंद्र सरकार से पूछा कि क्या वह इस पर लगाम लगाने के लिए वेब पोर्टल और अन्य संगठनों पर जवाबदेही तय करने के बारे में वास्तव में गंभीर है।
बता दें कि पीठ ने ये टिप्पणियां जमीयत उलेमा-ए-हिंद सहित अन्य द्वारा दाखिल याचिकाओं पर सुनवाई के दौरान की। याचिकाओं में केंद्र सरकार को फर्जी खबरों के प्रसार को रोकने और मीडिया के एक वर्ग के खिलाफ सांप्रदायिक नफरत परोसने व कट्टरता फैलाने के लिए सख्त कार्रवाई करने का निर्देश देने की मांग की गई है।
इस मामले में पहले ही कोर्ट सरकार से यह कह चुका है कि उसे इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के जरिए फेक न्यूज फैलाने पर नियंत्रण की व्यवस्था बनानी चाहिए। गुरुवार को सरकार की तरफ से जवाब दाखिल करने के लिए कुछ और समय की मांग की गई। इसी दौरान कोर्ट ने यू-ट्यूब चैनल और सोशल मीडिया का भी मसला उठा दिया।
सॉलिसीटर जनरल के अलावा मामले में एक पक्ष के लिए पेश हुए वरिष्ठ वकील संजय हेगड़े ने भी इससे सहमति जताई। उन्होंने कहा कि टीवी चैनलों पर नियंत्रण के लिए पहले से केबल टीवी रेगुलेशन एक्ट, 1995 है। उसी के तहत तब्लीगी जमात मामले में याचिकाकर्ता कार्रवाई की मांग कर रहे हैं। लेकिन वेब मीडिया अभी भी स्वच्छंद है।
वहीं, सॉलिसीटर जनरल तुषार मेहता ने बताया कि वेब और सोशल मीडिया पर आवंछित गतिविधियों पर नियंत्रण के 'इंफॉर्मेशन टेक्नोलॉजी रूल्स, 2021' बनाया गया है। लेकिन इसके प्रावधानों को अलग-अलग मीडिया संस्थानों ने दिल्ली, बॉम्बे, मद्रास, कलकत्ता और केरल हाई कोर्ट में चुनौती दे दी है। कुछ मामलों में हाई कोर्ट ने मीडिया के खिलाफ कार्रवाई पर रोक भी लगा दी है। मेहता ने निवेदन करते हुए कहा कि केंद्र सरकार ने सभी मामलों की सुप्रीम कोर्ट में एक साथ सुनवाई के लिए आवेदन दिया है। कोर्ट उसे जल्द सुने।
इस दौरान मामले के एक याचिकाकर्ता ने अपनी प्रार्थना को संशोधित कर दोबारा दाखिल करने का निवेदन किया, ताकि आज कही जा रही बातों पर भी आगे चर्चा हो सके। कोर्ट ने इसकी अनुमति देते हुए सुनवाई 6 हफ्ते के लिए टाल दी।
नैतिकता कानूनों से संबंधित समस्याओं को अपडेट करेगा फ्रेशर्स के लिए एक अच्छा रास्ता देने के लिए उनके लिए धन्यवाद!