Saturday, March 6, 2021

कर्नाटक राज्य: गुरु नानक अस्पताल बीदर ने एक साल में एक मल्टी स्पेशलिटी कार्डियो डायलासिस और न्यूरो ट्रॉमा  नई उपकरण प्राप्त कर लिया

बीदर: गुरु नानक अस्पताल बीदर का सबसे पुराना हॉस्पिटल है और एक वर्ष मे और सभी डॉक्टर जो अपनी कड़ी मेहनत से काम करअब इसके गुरु नानक मल्टी स्पेशलिटी अस्पताल,
डॉ। लिंगराज न्यूरो सर्जन गुरु नानक हॉस्पिटल बिदार

हॉस्पिटल के अन्य डॉक्टर्स मौजूद

न्यूरो ट्रेउमा केयर की आज उद्धघाटन किया गया 

बीदर: गुरु नानक अस्पताल बीदर में एक वर्ष में सबसे पुराना अस्पताल। एमडी और सभी डॉक्टर जो अपनी कड़ी मेहनत से काम करअब इसके गुरु नानक मल्टी स्पेशलिटी अस्पताल,

डॉ संजीव कुमार कार्डियोलॉजिस्ट, डॉ। मुड्डा नेफ्रोलॉजिस्ट एंड डायलिसिस सेंटर, डॉ शशांक  कुलकर्णी डायबिटीज, डॉ मतीन और सभी की मेहनत से आज गुरु नानक मल्टी स्पेशलिटी हॉस्पिटल और अब न्यूरो ट्रॉमा केयर डॉ लिंगराज
न्यूरो सर्जन गुरु नानक में शामिल होने के सन्दर्भ मे उनका सभी ने स्वागत किया,
गुरु नानक मल्टीस्पेशलिटी हॉस्पिटल सफालता MD और सीनियर डॉक्टर्स और स्टाफ की मेहनत

कर्नाटक राज्य: गुरु नानक अस्पताल बीदर ने एक साल में एक मल्टी स्पेशलिटी कार्डियो डायलासिस और न्यूरो ट्रॉमा  नई उपकरण प्राप्त कर लिया

बीदर: गुरु नानक अस्पताल बीदर का सबसे पुराना हॉस्पिटल है और एक वर्ष मे और सभी डॉक्टर जो अपनी कड़ी मेहनत से काम करअब इसके गुरु नानक मल्टी स्पेशलिटी अस्पताल,
डॉ। लिंगराज न्यूरो सर्जन गुरु नानक हॉस्पिटल बिदार

हॉस्पिटल के अन्य डॉक्टर्स मौजूद

न्यूरो ट्रेउमा केयर की आज उद्धघाटन किया गया 

बीदर: गुरु नानक अस्पताल बीदर में एक वर्ष में सबसे पुराना अस्पताल। एमडी और सभी डॉक्टर जो अपनी कड़ी मेहनत से काम करअब इसके गुरु नानक मल्टी स्पेशलिटी अस्पताल,

डॉ संजीव कुमार कार्डियोलॉजिस्ट, डॉ। मुड्डा नेफ्रोलॉजिस्ट एंड डायलिसिस सेंटर, डॉ शशांक  कुलकर्णी डायबिटीज, डॉ मतीन और सभी की मेहनत से आज गुरु नानक मल्टी स्पेशलिटी हॉस्पिटल और अब न्यूरो ट्रॉमा केयर डॉ लिंगराज
न्यूरो सर्जन गुरु नानक में शामिल होने के सन्दर्भ मे उनका सभी ने स्वागत किया,
गुरु नानक मल्टीस्पेशलिटी हॉस्पिटल सफालता MD और सीनियर डॉक्टर्स और स्टाफ की मेहनत

Wednesday, March 3, 2021

आचार संहिता-प्रेस परिषद् अधिनियम, 1978 की धारा 13 2 ख्र द्वारा परिषद् को समाचार कर्मियों की संहायता तथा मार्गदर्शन हेतु उच्च व्ययवसायिक स्तरों के अनुरूप समाचार समाचारं एजेंसियों और पत्रकारों के लिये आचार संहिता बनाने का व्यादेश दिया गया है।

आचार संहिता-


प्रेस परिषद् अधिनियम, 1978 की धारा 13 2 ख्र द्वारा परिषद् को समाचार कर्मियों की संहायता तथा मार्गदर्शन हेतु उच्च व्ययवसायिक स्तरों के अनुरूप समाचार पत्रों; समाचारं एजेंसियों और पत्रकारों के लिये आचार संहिता बनाने का व्यादेश दिया गया है। ऐसी संहिता बनाना एक सक्रिय कार्य है जिसे समय और घटनाओं के साथ कदम से कदम मिलाना होगा।


निमार्ण संकेत करता है कि प्रेस परिषद् द्वारा मामलों के आधार पर अपने निर्णयों के जरिये संहिता तैयार की जाये। परिषद् द्वारा जनरूचि और पत्रकारिता नीति के उल्लंघन शीर्षक के अंतर्गत भारतीय विधि संस्थान के साथ मिलकर पहले वर्ष 1984 में अपने निर्णयों / मार्गनिर्देशों के जरिये व्यापक सिद्धातों का संग्रह तैयार किया गया था। सिद्धांतों का यह संकलन परिषद् के निर्णयों अथवा अधिनिर्णयों अथवा इसके अथवा इसके द्वारा अथवा इसके अध्यक्ष द्वारा जारी मार्गनिर्देशों से चुना गया है। 1986 में, सरकार और इसके प्राधिकारियों के विरूद्ध शिकायतों अथवा मामलों, जोकि दूरगाती और महत्वपूर्ण प्रकृति के थे और जिसमें सरकार सहित किसी प्राधिकारी के आचरण का सम्मान करते हुए टिप्पणियाँ शामिल थीं, में निर्णयों और सिद्धांतों से सम्बद्ध प्रेस की स्वतंत्रता का उल्लंघन शीर्षक के अंतर्गत संकलन का दूसरा भाग प्रकाशित किया गया।


1986 से संहिता निर्माण की त्वरित प्रकिया सहित शिकायतों की संस्थापना और प्रेस परिषद् द्वारा उनके निपटान में लगातार वृद्धि होती रही है। 1992 में परिषद् ने पत्रकारिता नीति निर्देशिका प्रस्तुत की जिसमें परिषद् द्वारा जारी मार्गनिर्देशों और निर्णयों से छाँटकर लिये गये पत्रकारिता नीति सिद्धांत हैं। चूँकि तब से परिषद् द्वारा प्रेस के अधिकारों और दायित्वों से सम्बद्ध कई अत्यधिक महत्वपूर्ण निर्णय दिये गये हैं,


प्रेस/मीडिया पर पूर्व नियंत्रण रखने अथवा वर्जित रखने का राज्य अथवा इसके अधिकारियों को अधिकार देता हो


सार्वजनिक पदाधिकारी के निजता के दावे के संबंध में, परिषद् ने निर्दिट किया है कि यदि सार्वजनिक पदाधिकारी की निजता और उनके निजी आचरण, आदतों व्यक्तिगत कार्यों और चरित्र की विशेषताओं, जिनका टकराव अथवा संबंध उनकी शासकीय ड्यूटी के समुचित निर्वाह से हो, के बारे में जानने के जानता के अधिकार के मध्य टकराव हो, तो पूर्ववर्ती को उत्तरवर्ती के सामने झुकना चाहिए। हालाँकि, व्यक्तिगत निजता के मामलों में, जोकि उनकी शासकीय ड्यटी के निर्वाह से सम्बद्ध नहीं है, सार्वजनिक पदाधिकारी को वही सुरक्षा मिलती है जोकि किसी अन्य नागरिक को मिलती है।


यह मार्गनिर्देशिका कुल मिलाकर विधि संबंधी, नैतिक और सदाचार संबंधी समस्याओं जोकि प्रतिदिन समाचारपत्रों के मालिकों, पत्रकारों संपादकों का विरोध करती है, के माध्यम से सुरक्षा और जिम्मेवारी का मार्ग सुझाती है। मार्गनिर्देशिका अकाट्य सिद्धांतों का संकलन नहीं है बल्कि इसमें व्यापक सामान्य सिद्धांत हैं, जोकि प्रत्येक मामले की परिस्थिति को देखते हुए समुचित विवेक और अनुकूलन के साथ लागू किये जाते है, तो वे व्यावसायिक ईमानदारी के मार्ग सहित पत्रकारों को उनके व्यवसाय के संचालन को आत्म-संयमित करने में उनकी सहायता करेंगे। किसी भी तरह ये थकाउ नहीं है न ही इनका अभिप्राय सख्ती है जोकि प्रेस के स्वच्छंद कार्य में बाधा डाले।


बृहद-सिद्धांतों का विकास-

 

पत्रकारिता के स्तरों और प्रेस की स्वतंत्रता दोनों के बारे में विभिन्न विषयों पर अपने निर्णय के सिलसिले में परिषद् द्वारा विकसित किये गये कुछ बृह्द सिद्धांतों को संक्षिप्त रूप में निम्नानुसार दिया गया है ।


सांप्रदायिक लेख-


संप्रदायों और व्यक्तियों पर अपमानजनक और उत्तेजक हमले नहीं किये जाने चाहिए। अफवाहों पर आधारित सांप्रदायिक घटनाओं पर कोई भी समाचार पत्रकारिता नीति का उल्लंघन होगा। इसी प्रकार महत्वपूर्ण चूक करते हुए विकृत रिपोर्टिग करना सही नहीं होगा। जहाँ शांतिपूर्ण और कानूनी तरीके से किसी संप्रदाय की सही शिकायत को दूर करने के इरादे से इस ओर ध्यानाकृट करना प्रेस का वैध कार्य है, वहीं शिकायतों की खोज/अथवा इन्हें बढ़ा चढ़ाकर नहीं देना चाहिए विशेषता से उन शिकायतों को, जिनमें सांप्रदायिक वैमनस्य बढ़ाने की क्षमता हो।


स्वस्थ और शांतिपूर्ण वातावरण पैदा करने में यह अत्यधिक लाभदायक होगा यदि सनसनीखेज उत्तेजक और खतरनाक शीर्षकों को छोड़ दिया जाये और हिंसा अथवा बर्बरता के कार्यों की रिपोर्ट इस प्रकार से की जाये कि राज्य की कानून और व्यवस्था में लोगों का विश्वास कम न हो तथा इसके साथ-साथ इसमें ऐसे कार्यों को हतोत्साहित करने और उनकी निंदा करने का प्रभाव हो। एक संप्रदाय को बदनाम करना गंभीर मामला है और इसे राट्र-विरोधी गतिविधि बताना निंदा होगा और यह पत्रकारिता असंगति के समान है।

विगत गलतियों को दोहराने के विरूद्ध वर्तमान पीढ़ी को चेतावनी देने के लिए ऐतिहासिक तथ्यों को प्रकाशित करने में कोई असंगति नहीं है चाहे ये गलतियाँ एक विशेष संप्रदाय के लिये रूचिकर न हों।


धार्मिक संप्रदायों के बारे में वक्तव्य देने में कोई आपत्ति नहीं है यदि ये संयमित भाषा में दिये जाते हैं और गलत अथवा बढ़ा-चढ़ाकर नहीं दिये जाते हैं।


पत्रकारिता का अनुचित प्रयोग-

पत्रकारिता के अनुचित प्रयोग के संबंध में अपने निर्णयों के माध्यम से परिषद् द्वारा विकसित किये गये कुछ सिद्धांत हैं विश्वास में लेकर दर्शाया गया अथवा विचार-विमर्श किया गया कोई मामला, स्रोत की सहमति लिये बिना प्रकाशित नहीं किया जाना चाहिए। यदि संपादक को ऐसा लगता है कि प्रकाशन जनहित में है, तब उसे उचित पाद-टिप्पणी में यह स्पट करना चाहिए कि सम्बद्ध वक्तव्य अथवा विचार-विमर्श प्रकाशित किया जा रहा था यद्यपि इसे अनाधिकारिक दिया गया था।


एक विज्ञापन जिसमें कुछ भी गैर-कानूनी अथवा अवैध हो अथवा जोकि सदरूचि अथवा पत्रकारिता नीति अथवा औचित्य के विपरीत हो, प्रकाशित नहीं किया जाना चाहिए।


समाचारपत्रों द्वारा उद्धरणों के संबंध में सटीकता बनाये रखने के लिये समुचित सावधानी बरती जानी चाहिए।


जहाँ एक समाचारपत्र पर पत्रकारिता नीति के उल्लंघन का आरोप लगाया जाता है, यह तर्क कि उसने प्रकाशन बंद कर दिया है, संपादक का बचाव नहीं होगा क्योंकि उनका आचरण ही शिकायत का विाय है।


अश्लीलता और कुरूचि-

रूचि का अर्थ संदर्भ के अनुसार अलग-अलग होता है। पत्रकार के लिये इसका अर्थ है कि जिसे शालीनता अथवा औचित्य के आधार पर उन्हें प्रकाशित नहीं करना चाहिए। जहाँ एक मामले में यौन संबंधी भावनाओं को भड़काने की प्रवृत्ति हो, पत्रिका में इसका प्रकाशन जनता, युवा अथवा वृद्ध के लिये अवांछनीय होगा। जनरूचि को बातावरण, परिस्थिति के साथ समसामयिक समाज में विद्यमान रूचि की धारणाओं के साथ परखा जाना चाहिए।


अश्लीलता का मूल परीक्षण यह है कि क्या मामला इतना अभद्र है कि यह चरित्र को बिगाड़ अथवा भ्रट कर सकता है। अन्य परीक्षण यह है कि क्या प्रयुक्त भाषा और दृश्य का चित्रांकन गंदा, अश्लील, अरूचिकर अथवा कामुक समझा जा सकता है।


कोई भी कहानी अश्लील है अथवा नहीं, पत्रिका की साहित्यिक अथवा सांस्कृतिक प्रकृति और सामाजिक विाय के स्तर वस्तु जैसे कारकों पर निर्भर करेंगी। एक पत्रिका अथवा सामाचारपत्र के विायगत मामले की पिक्चर का इस प्रश्न से संबंध होता है कि क्या प्रकाशित किया गया मामला जनरूचि के स्तरों से कम है अथवा नहीं। पिक्चर जनरूचि से कम है अथवा नहीं, यह परखने के सम्बद्ध कारकों में से एक पत्रिका की प्रकृति अथवा उद्देश्य होगा- क्या यह कला, चित्रकला, दवा शोध, अथवा यौन सुधार से सम्बद्ध है।


प्रेस परिषद् ने मुद्रण मीडिया में अश्लील विज्ञापनों के बढ़ते हुए उदाहरणों पर चिंता व्यक्त की। यह सैंसरशिप के विरूद्ध थी परंतु प्रकाशन से पूर्व किसी अश्लील सामग्री की जाँच हेतु निवारण संबंधी उपायों का समर्थन किया गया। चूँकि ऐसे अधिकतर विज्ञापन, विज्ञापन एजेंसियों के जरिये दिये जाते हैं, परिषद् ने यह महसूस किया कि यह कार्य कठिन नहीं होगा यदि ये एजेंसियाँ ऐसे विज्ञापनों, जोकि एक औसतन नागरिक द्वारा परिवार में देखते हुए आपत्तिजनक समझा जाये, को तैयार और जारी करते समय अधिक सावधानी और समय बरतें। इन्होंने महसूस किया कि भारत की विज्ञापन एजेंसियों का संघ इन सभी विज्ञापन एजेंसियों के संरक्षक संगठन के रूप में मामले में अत्यधिक महत्वपूर्ण और सकारात्मक भूमिका निभा सकेगा और ऐसे विज्ञापन न देने में इनके सहयोग की माँग की जोकि जिनसे सीघ्र समय मेंदेश के सामाजिक सांस्कृतिक मूल्यों को नुकसान पहुँचने की संभावना हो। परिषद् ने समाचारपत्रों से भी अपील की कि यें विज्ञापन दाताओं से प्रत्यक्षतया अथवा विज्ञापन एजेंसियों से प्राप्त होने वाले विज्ञापनों की सावधानीपूर्वक जाँच करें और अश्लील तथा आपत्तिजनक समझे जाने वाले विज्ञापनों को अस्वीकार करके आत्म संयम बरतें। आक्षेपित प्रकाशन के विरूद्ध स्वयं द्वारा बनाये गये निम्नलिखित मार्गनिर्देशों को भी इन्होंने दोहराया।


समाचारपत्रों को ऐसे विज्ञापन नहीं देने चाहिए जोकि अश्लील हों अथवा महिला को नग्नावस्था में दर्शाते हुए पुरुषों की कामुकता को उत्तेजित करे जैसे कि वह स्वयं बिक्री की वस्तु हो।


एक तस्वीर अश्लील है अथवा नहीं, यह तीन परीक्षणों के संबंध में परखा जाना चाहिए, अभिधानतः


1, क्या यह अश्लील और आशालीन है,

2, क्या यह केवल अश्लील लेखन का अंश है,

3, क्या इस प्रकाशन का उद्देश्य केवलमात्र ऐसे लोगों में, जिनके बीच इसे परिचालित करने का इरादा है, तथा किशोरों की यौन भावनाओं को उत्तेजित करके पैसा कमाना है। दूसरे शब्दों में, क्या यह वाणिज्यिक लाभ के लिये हानिकारक शोषण है।


अन्य सम्बद्ध विचार योग्य विषय यह है कि क्य तस्वीर पत्रिका के विषयगत मामले से सम्बद्ध है। कहने का तात्पर्य यह है कि क्या इसका प्रकाशन कला, चित्रकला, दवा, शोध अथवा यौन सुधार किसी सामाजिक अथवा लोक उद्देश्य के पूर्व चिंतन की पूर्ति करता है।


उत्तर का अधिकार-


मूल सिद्धांत जोकि इस विषय पर विभिन्न अधिनिर्णयों से निकलता है, पत्रों के प्रकाशन में संपादक के स्वनिर्णय का समर्थन करता है। हालाँकि, इनसे आशा की जाती है कि वे सार्वजनिक प्रकृति के मामले पर गलत वक्तव्य अथवा रिपोर्ट को स्वयं ठीक करेंगे। जानने के सार्वजनिक अधिकार के आधार पर आम पाठक वैध अधिकार का दावा कर सकता है। इसके अतिरिक्त, कोई व्यक्ति जिसका प्रकाशन में विशेष रूप से संदर्भ दिया गया हो, समाचारपत्र के स्तंभो में उत्तर के अधिकार के लिये स्वतः दावा कर सकता है। यदि परिषद् को यह अधिकार नहीं है कि वह एक समाचारपत्र को प्रत्युत्तर प्रकाशित करने के लिए बाध्य करे, यह समाचारपत्र को इसके विरूद्ध जाँच पड़ताल का विवरण प्रकाशित करने के निर्देश दे सकती है।


समाचारपत्र का पूर्व सत्यापन-


प्रकाशन से पूर्व समाचार का सत्यापन आवश्यक है विशेा रूप से जब रिपोर्ट में अपमानजनक अथवा लिखित मानहानि संबंधी अधिस्वर हों अथवा इससे सांप्रदायिक तनाव हो सकता हो, न ही किन्हीं परिस्थितियों में भी लोगों के दूसरे वर्ग के विचारों के रूप में अफवाहों का प्रकाशन न्यायोचित ठहराया जा सकता है। जब भी किसी झूठे अथवा विकृत प्रकाशन पर संपादक का ध्यानाकृट किया जाता है, तो उन्हें आवश्यक संशोधन करने चाहिए।


मानहानि-अपमानजनक लेख-भारतीय दंड संहिता की धारा 499 के दूसरे अपवाद के अंतर्गत एक सार्वजनिक कर्मचारी के सार्वजनिक कार्यों के निर्वाह में उनके आचरण का सम्मान करते हुए अथवा उनके चरित्र का सम्मान करते हुए, जहाँ तक उस आचरण में उनका चरित्र दिखाई देता है, कुछ अन्य नहीं, सदभावना मे राय अभिव्यक्त करना मानहानि नहीं है। तदनुसार परिषद् की राय है कि जनजीवन पर उचित टिप्पणीयों/को अनुचित नहीं कहा जा सकता परंतु यदि कोई तथ्यात्मक वक्तव्य दिये जाते हैं, तो वे सत्य और सही होने चाहिए।


यदि कोई मानहानिजनक तत्व जुड़ा होता है, तो नुकसान हेतु किसी भी प्रकार की सिविल कार्यवाही में अधिक सद्भावना बचाव नहीं होगा।


निजता का अधिकार बनाम लोकप्रिय व्यक्ति- भारतीय प्रेस परिषद् ने लोकप्रिय व्यक्तियों के निजता के अधिकार और सार्वजनिक हित तथा सार्वजनिक महत्व की सूचना तक पहुँचने के प्रेस के अधिकार के मध्य संतुलन प्राप्त करने के लिये मार्गनिर्देश बनाये हैं। राट्रीय और अंतर्राट्रीय स्तर तथा दिल्ली में अप्रैल 1998 में प्रेस परिषदों के विश्व संघ के सम्मेलन में हुई गरमा गरम बहस में बल दिया गया कि इस संबंध में तीन प्रतियोगी संवैधानिक मूल्यों के मध्य सामंजस्य स्थापित करने की आवश्यकता है,
अर्थातः.क, एक व्यक्ति का निजता का अधिकार,

ख, प्रेस की स्वतंत्रता, और

ग, जनहित में लोकप्रिय व्यक्तियों के बारे में जानने का लोगों का अधिकार।


परिषद् ने इस मामले पर रिपोर्ट तैयार की है और निम्नानुसार मार्गनिर्देश बनाये है -


निजता का अधिकार अनुल्लघंनीय मानवाधिकार है। हालाँकि निजता की डिग्री स्थिति और एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति के लिये अलग-अलग होती है। सार्वजनिक व्यक्ति जोकि जनता के प्रतिनिधि के रूप में कार्य करते हैं, प्राइवेट व्यक्ति के समान निजता की वही डिग्री पाने की आशा नहीं कर सकते। उनके कार्य और आचरण जनहित में होता है। जनहित, जनता की रूचि से अलग रखा जा रहा है, यदि प्राइवेट भी किये जायें, तब भी प्रेस के माध्यम से लोगों की जानकारी में लाये जायें। इसके अनुरूप यह सुनिश्चित करना प्रेस की ड्यूटी है कि सार्वजनिक व्यक्ति के सार्वजनिक हित के ऐसे कार्यों और आचरण के बारे में सूचना सही तरीकों से प्राप्त की जाती है, समुचित रूप से सत्यापित करने और तत्पश्चात सटीक रिपोर्ट दी जाती है। लागों की निगाह से दूर किये कार्यों के बारे में सूचना प्राप्त करने के लिये, प्रेस से निगरानी वाले तरीके की आशा नहीं की जाती है। जहाँ से यह आशा की जाती है कि लोकप्रिय व्यक्तियों को तंग न करें, वहीं लोकप्रिय सार्वजनिक व्यक्तियों से भी यह आशा की जाती है कि वे अपनी कार्यप्रणाली में अधिक खुलापन लायें तथा जनता को उनके प्रतिनिधियों के कार्यों के बारें में सूचित करने की प्रेस की ड्युटी को पूरा करने में प्रेस को सहयोग दें।


प्रेस मार्गनिर्देश और नीति निर्माण-


परिषद् ने मार्गनिर्देश जारी किये है और प्रेस तथा लोगों से सम्बंद्ध विभिन्न मामलों पर नीति रूपरेखा की सिफारिश की। इसके अतिरिक्त जहाँ कहीं भी गंभीर स्थिति पैदा हुई जिसमें प्रेस से संयम और सावधानी के साथ कार्य करने की आशा की गई वहाँ परिषद् के अध्यक्ष, वक्तव्यों के माध्यम से प्रेस का मार्गदर्शन करते रहे हैं। जब कभी भी सुनियोजित बृहत हमले किये गये, तब इन्होंने ऐसे वक्तव्यों के माध्यम से तीव्र प्रतिक्रिया भी की।

1969 में, परिषद् ने सांप्रदायिक संबंधों से सम्बद्ध मामलों पर रिपोर्टिंग और टिप्पणियाँ करने में नियमों और स्तरों को निर्दिट करते हुए 10-सूत्री मार्गनिर्देश जारी किये। सुविस्तार के बिना मार्गनिर्देशों में यह सूचीबद्ध और स्पट किया गया कि पत्रकारिता औचित्य और नीति के विरूद्ध क्या आपत्तिजनक होगा, अतः उससे बचना चाहिए। संलग्नक बी, ख,

पुनः 1990 में अयोध्या की घटनाओं को देखते हुए, परिषद् ने 1969 के मार्गनिर्देशों को दोहराते हुए, नये अनुभव के प्रकाश में अन्य 12 सूत्री मार्गनिर्देश जारी किये। परिषद् ने कहा कि इसमें रेखांकित सिद्धांत प्रशिक्षण की अवस्था से लेकर मीडिया के प्रत्येक स्तर पर अंतर्निविट किये जाने चाहिए। इन सिद्धांतों संलग्नक बी-2 ने प्रेस और राज्य दोनों के लिये कुछ कार्य करने और कुछ कार्य न करने निर्दिट किये।

परिषद् ने पिछले वर्षों में राट्रपति, प्रधानमंत्री आदि के विदेशी दौरे पर उनके साथ जाने के लिये पत्रकारों के चयन, विज्ञापनों अखबारी कागज़, मान्यता के नियमों जैसे कुछ विायों के बारे में नीति रूपरेखा का निर्माण किया है।

जैसाकि पहले विवेचित किया गया है, परिषद् ने, अक्टूबर 1982 में अपनी बैठक में लिये गये निर्णय के पश्चात अपने अधिनिर्णयों के दो संकलन, मामलों के समान सैट के अंत में अधिनिर्णयों को रेखांकित करके सिद्धांत देते हुए पत्रकारिता नीति के उल्लंघन और प्रेस की स्वतंत्रता के उल्लंघन पर प्रकाशित किये।

आचार संहिता-प्रेस परिषद् अधिनियम, 1978 की धारा 13 2 ख्र द्वारा परिषद् को समाचार कर्मियों की संहायता तथा मार्गदर्शन हेतु उच्च व्ययवसायिक स्तरों के अनुरूप समाचार समाचारं एजेंसियों और पत्रकारों के लिये आचार संहिता बनाने का व्यादेश दिया गया है।

आचार संहिता-


प्रेस परिषद् अधिनियम, 1978 की धारा 13 2 ख्र द्वारा परिषद् को समाचार कर्मियों की संहायता तथा मार्गदर्शन हेतु उच्च व्ययवसायिक स्तरों के अनुरूप समाचार पत्रों; समाचारं एजेंसियों और पत्रकारों के लिये आचार संहिता बनाने का व्यादेश दिया गया है। ऐसी संहिता बनाना एक सक्रिय कार्य है जिसे समय और घटनाओं के साथ कदम से कदम मिलाना होगा।


निमार्ण संकेत करता है कि प्रेस परिषद् द्वारा मामलों के आधार पर अपने निर्णयों के जरिये संहिता तैयार की जाये। परिषद् द्वारा जनरूचि और पत्रकारिता नीति के उल्लंघन शीर्षक के अंतर्गत भारतीय विधि संस्थान के साथ मिलकर पहले वर्ष 1984 में अपने निर्णयों / मार्गनिर्देशों के जरिये व्यापक सिद्धातों का संग्रह तैयार किया गया था। सिद्धांतों का यह संकलन परिषद् के निर्णयों अथवा अधिनिर्णयों अथवा इसके अथवा इसके द्वारा अथवा इसके अध्यक्ष द्वारा जारी मार्गनिर्देशों से चुना गया है। 1986 में, सरकार और इसके प्राधिकारियों के विरूद्ध शिकायतों अथवा मामलों, जोकि दूरगाती और महत्वपूर्ण प्रकृति के थे और जिसमें सरकार सहित किसी प्राधिकारी के आचरण का सम्मान करते हुए टिप्पणियाँ शामिल थीं, में निर्णयों और सिद्धांतों से सम्बद्ध प्रेस की स्वतंत्रता का उल्लंघन शीर्षक के अंतर्गत संकलन का दूसरा भाग प्रकाशित किया गया।


1986 से संहिता निर्माण की त्वरित प्रकिया सहित शिकायतों की संस्थापना और प्रेस परिषद् द्वारा उनके निपटान में लगातार वृद्धि होती रही है। 1992 में परिषद् ने पत्रकारिता नीति निर्देशिका प्रस्तुत की जिसमें परिषद् द्वारा जारी मार्गनिर्देशों और निर्णयों से छाँटकर लिये गये पत्रकारिता नीति सिद्धांत हैं। चूँकि तब से परिषद् द्वारा प्रेस के अधिकारों और दायित्वों से सम्बद्ध कई अत्यधिक महत्वपूर्ण निर्णय दिये गये हैं,


प्रेस/मीडिया पर पूर्व नियंत्रण रखने अथवा वर्जित रखने का राज्य अथवा इसके अधिकारियों को अधिकार देता हो


सार्वजनिक पदाधिकारी के निजता के दावे के संबंध में, परिषद् ने निर्दिट किया है कि यदि सार्वजनिक पदाधिकारी की निजता और उनके निजी आचरण, आदतों व्यक्तिगत कार्यों और चरित्र की विशेषताओं, जिनका टकराव अथवा संबंध उनकी शासकीय ड्यूटी के समुचित निर्वाह से हो, के बारे में जानने के जानता के अधिकार के मध्य टकराव हो, तो पूर्ववर्ती को उत्तरवर्ती के सामने झुकना चाहिए। हालाँकि, व्यक्तिगत निजता के मामलों में, जोकि उनकी शासकीय ड्यटी के निर्वाह से सम्बद्ध नहीं है, सार्वजनिक पदाधिकारी को वही सुरक्षा मिलती है जोकि किसी अन्य नागरिक को मिलती है।


यह मार्गनिर्देशिका कुल मिलाकर विधि संबंधी, नैतिक और सदाचार संबंधी समस्याओं जोकि प्रतिदिन समाचारपत्रों के मालिकों, पत्रकारों संपादकों का विरोध करती है, के माध्यम से सुरक्षा और जिम्मेवारी का मार्ग सुझाती है। मार्गनिर्देशिका अकाट्य सिद्धांतों का संकलन नहीं है बल्कि इसमें व्यापक सामान्य सिद्धांत हैं, जोकि प्रत्येक मामले की परिस्थिति को देखते हुए समुचित विवेक और अनुकूलन के साथ लागू किये जाते है, तो वे व्यावसायिक ईमानदारी के मार्ग सहित पत्रकारों को उनके व्यवसाय के संचालन को आत्म-संयमित करने में उनकी सहायता करेंगे। किसी भी तरह ये थकाउ नहीं है न ही इनका अभिप्राय सख्ती है जोकि प्रेस के स्वच्छंद कार्य में बाधा डाले।


बृहद-सिद्धांतों का विकास-

 

पत्रकारिता के स्तरों और प्रेस की स्वतंत्रता दोनों के बारे में विभिन्न विषयों पर अपने निर्णय के सिलसिले में परिषद् द्वारा विकसित किये गये कुछ बृह्द सिद्धांतों को संक्षिप्त रूप में निम्नानुसार दिया गया है ।


सांप्रदायिक लेख-


संप्रदायों और व्यक्तियों पर अपमानजनक और उत्तेजक हमले नहीं किये जाने चाहिए। अफवाहों पर आधारित सांप्रदायिक घटनाओं पर कोई भी समाचार पत्रकारिता नीति का उल्लंघन होगा। इसी प्रकार महत्वपूर्ण चूक करते हुए विकृत रिपोर्टिग करना सही नहीं होगा। जहाँ शांतिपूर्ण और कानूनी तरीके से किसी संप्रदाय की सही शिकायत को दूर करने के इरादे से इस ओर ध्यानाकृट करना प्रेस का वैध कार्य है, वहीं शिकायतों की खोज/अथवा इन्हें बढ़ा चढ़ाकर नहीं देना चाहिए विशेषता से उन शिकायतों को, जिनमें सांप्रदायिक वैमनस्य बढ़ाने की क्षमता हो।


स्वस्थ और शांतिपूर्ण वातावरण पैदा करने में यह अत्यधिक लाभदायक होगा यदि सनसनीखेज उत्तेजक और खतरनाक शीर्षकों को छोड़ दिया जाये और हिंसा अथवा बर्बरता के कार्यों की रिपोर्ट इस प्रकार से की जाये कि राज्य की कानून और व्यवस्था में लोगों का विश्वास कम न हो तथा इसके साथ-साथ इसमें ऐसे कार्यों को हतोत्साहित करने और उनकी निंदा करने का प्रभाव हो। एक संप्रदाय को बदनाम करना गंभीर मामला है और इसे राट्र-विरोधी गतिविधि बताना निंदा होगा और यह पत्रकारिता असंगति के समान है।

विगत गलतियों को दोहराने के विरूद्ध वर्तमान पीढ़ी को चेतावनी देने के लिए ऐतिहासिक तथ्यों को प्रकाशित करने में कोई असंगति नहीं है चाहे ये गलतियाँ एक विशेष संप्रदाय के लिये रूचिकर न हों।


धार्मिक संप्रदायों के बारे में वक्तव्य देने में कोई आपत्ति नहीं है यदि ये संयमित भाषा में दिये जाते हैं और गलत अथवा बढ़ा-चढ़ाकर नहीं दिये जाते हैं।


पत्रकारिता का अनुचित प्रयोग-

पत्रकारिता के अनुचित प्रयोग के संबंध में अपने निर्णयों के माध्यम से परिषद् द्वारा विकसित किये गये कुछ सिद्धांत हैं विश्वास में लेकर दर्शाया गया अथवा विचार-विमर्श किया गया कोई मामला, स्रोत की सहमति लिये बिना प्रकाशित नहीं किया जाना चाहिए। यदि संपादक को ऐसा लगता है कि प्रकाशन जनहित में है, तब उसे उचित पाद-टिप्पणी में यह स्पट करना चाहिए कि सम्बद्ध वक्तव्य अथवा विचार-विमर्श प्रकाशित किया जा रहा था यद्यपि इसे अनाधिकारिक दिया गया था।


एक विज्ञापन जिसमें कुछ भी गैर-कानूनी अथवा अवैध हो अथवा जोकि सदरूचि अथवा पत्रकारिता नीति अथवा औचित्य के विपरीत हो, प्रकाशित नहीं किया जाना चाहिए।


समाचारपत्रों द्वारा उद्धरणों के संबंध में सटीकता बनाये रखने के लिये समुचित सावधानी बरती जानी चाहिए।


जहाँ एक समाचारपत्र पर पत्रकारिता नीति के उल्लंघन का आरोप लगाया जाता है, यह तर्क कि उसने प्रकाशन बंद कर दिया है, संपादक का बचाव नहीं होगा क्योंकि उनका आचरण ही शिकायत का विाय है।


अश्लीलता और कुरूचि-

रूचि का अर्थ संदर्भ के अनुसार अलग-अलग होता है। पत्रकार के लिये इसका अर्थ है कि जिसे शालीनता अथवा औचित्य के आधार पर उन्हें प्रकाशित नहीं करना चाहिए। जहाँ एक मामले में यौन संबंधी भावनाओं को भड़काने की प्रवृत्ति हो, पत्रिका में इसका प्रकाशन जनता, युवा अथवा वृद्ध के लिये अवांछनीय होगा। जनरूचि को बातावरण, परिस्थिति के साथ समसामयिक समाज में विद्यमान रूचि की धारणाओं के साथ परखा जाना चाहिए।


अश्लीलता का मूल परीक्षण यह है कि क्या मामला इतना अभद्र है कि यह चरित्र को बिगाड़ अथवा भ्रट कर सकता है। अन्य परीक्षण यह है कि क्या प्रयुक्त भाषा और दृश्य का चित्रांकन गंदा, अश्लील, अरूचिकर अथवा कामुक समझा जा सकता है।


कोई भी कहानी अश्लील है अथवा नहीं, पत्रिका की साहित्यिक अथवा सांस्कृतिक प्रकृति और सामाजिक विाय के स्तर वस्तु जैसे कारकों पर निर्भर करेंगी। एक पत्रिका अथवा सामाचारपत्र के विायगत मामले की पिक्चर का इस प्रश्न से संबंध होता है कि क्या प्रकाशित किया गया मामला जनरूचि के स्तरों से कम है अथवा नहीं। पिक्चर जनरूचि से कम है अथवा नहीं, यह परखने के सम्बद्ध कारकों में से एक पत्रिका की प्रकृति अथवा उद्देश्य होगा- क्या यह कला, चित्रकला, दवा शोध, अथवा यौन सुधार से सम्बद्ध है।


प्रेस परिषद् ने मुद्रण मीडिया में अश्लील विज्ञापनों के बढ़ते हुए उदाहरणों पर चिंता व्यक्त की। यह सैंसरशिप के विरूद्ध थी परंतु प्रकाशन से पूर्व किसी अश्लील सामग्री की जाँच हेतु निवारण संबंधी उपायों का समर्थन किया गया। चूँकि ऐसे अधिकतर विज्ञापन, विज्ञापन एजेंसियों के जरिये दिये जाते हैं, परिषद् ने यह महसूस किया कि यह कार्य कठिन नहीं होगा यदि ये एजेंसियाँ ऐसे विज्ञापनों, जोकि एक औसतन नागरिक द्वारा परिवार में देखते हुए आपत्तिजनक समझा जाये, को तैयार और जारी करते समय अधिक सावधानी और समय बरतें। इन्होंने महसूस किया कि भारत की विज्ञापन एजेंसियों का संघ इन सभी विज्ञापन एजेंसियों के संरक्षक संगठन के रूप में मामले में अत्यधिक महत्वपूर्ण और सकारात्मक भूमिका निभा सकेगा और ऐसे विज्ञापन न देने में इनके सहयोग की माँग की जोकि जिनसे सीघ्र समय मेंदेश के सामाजिक सांस्कृतिक मूल्यों को नुकसान पहुँचने की संभावना हो। परिषद् ने समाचारपत्रों से भी अपील की कि यें विज्ञापन दाताओं से प्रत्यक्षतया अथवा विज्ञापन एजेंसियों से प्राप्त होने वाले विज्ञापनों की सावधानीपूर्वक जाँच करें और अश्लील तथा आपत्तिजनक समझे जाने वाले विज्ञापनों को अस्वीकार करके आत्म संयम बरतें। आक्षेपित प्रकाशन के विरूद्ध स्वयं द्वारा बनाये गये निम्नलिखित मार्गनिर्देशों को भी इन्होंने दोहराया।


समाचारपत्रों को ऐसे विज्ञापन नहीं देने चाहिए जोकि अश्लील हों अथवा महिला को नग्नावस्था में दर्शाते हुए पुरुषों की कामुकता को उत्तेजित करे जैसे कि वह स्वयं बिक्री की वस्तु हो।


एक तस्वीर अश्लील है अथवा नहीं, यह तीन परीक्षणों के संबंध में परखा जाना चाहिए, अभिधानतः


1, क्या यह अश्लील और आशालीन है,

2, क्या यह केवल अश्लील लेखन का अंश है,

3, क्या इस प्रकाशन का उद्देश्य केवलमात्र ऐसे लोगों में, जिनके बीच इसे परिचालित करने का इरादा है, तथा किशोरों की यौन भावनाओं को उत्तेजित करके पैसा कमाना है। दूसरे शब्दों में, क्या यह वाणिज्यिक लाभ के लिये हानिकारक शोषण है।


अन्य सम्बद्ध विचार योग्य विषय यह है कि क्य तस्वीर पत्रिका के विषयगत मामले से सम्बद्ध है। कहने का तात्पर्य यह है कि क्या इसका प्रकाशन कला, चित्रकला, दवा, शोध अथवा यौन सुधार किसी सामाजिक अथवा लोक उद्देश्य के पूर्व चिंतन की पूर्ति करता है।


उत्तर का अधिकार-


मूल सिद्धांत जोकि इस विषय पर विभिन्न अधिनिर्णयों से निकलता है, पत्रों के प्रकाशन में संपादक के स्वनिर्णय का समर्थन करता है। हालाँकि, इनसे आशा की जाती है कि वे सार्वजनिक प्रकृति के मामले पर गलत वक्तव्य अथवा रिपोर्ट को स्वयं ठीक करेंगे। जानने के सार्वजनिक अधिकार के आधार पर आम पाठक वैध अधिकार का दावा कर सकता है। इसके अतिरिक्त, कोई व्यक्ति जिसका प्रकाशन में विशेष रूप से संदर्भ दिया गया हो, समाचारपत्र के स्तंभो में उत्तर के अधिकार के लिये स्वतः दावा कर सकता है। यदि परिषद् को यह अधिकार नहीं है कि वह एक समाचारपत्र को प्रत्युत्तर प्रकाशित करने के लिए बाध्य करे, यह समाचारपत्र को इसके विरूद्ध जाँच पड़ताल का विवरण प्रकाशित करने के निर्देश दे सकती है।


समाचारपत्र का पूर्व सत्यापन-


प्रकाशन से पूर्व समाचार का सत्यापन आवश्यक है विशेा रूप से जब रिपोर्ट में अपमानजनक अथवा लिखित मानहानि संबंधी अधिस्वर हों अथवा इससे सांप्रदायिक तनाव हो सकता हो, न ही किन्हीं परिस्थितियों में भी लोगों के दूसरे वर्ग के विचारों के रूप में अफवाहों का प्रकाशन न्यायोचित ठहराया जा सकता है। जब भी किसी झूठे अथवा विकृत प्रकाशन पर संपादक का ध्यानाकृट किया जाता है, तो उन्हें आवश्यक संशोधन करने चाहिए।


मानहानि-अपमानजनक लेख-भारतीय दंड संहिता की धारा 499 के दूसरे अपवाद के अंतर्गत एक सार्वजनिक कर्मचारी के सार्वजनिक कार्यों के निर्वाह में उनके आचरण का सम्मान करते हुए अथवा उनके चरित्र का सम्मान करते हुए, जहाँ तक उस आचरण में उनका चरित्र दिखाई देता है, कुछ अन्य नहीं, सदभावना मे राय अभिव्यक्त करना मानहानि नहीं है। तदनुसार परिषद् की राय है कि जनजीवन पर उचित टिप्पणीयों/को अनुचित नहीं कहा जा सकता परंतु यदि कोई तथ्यात्मक वक्तव्य दिये जाते हैं, तो वे सत्य और सही होने चाहिए।


यदि कोई मानहानिजनक तत्व जुड़ा होता है, तो नुकसान हेतु किसी भी प्रकार की सिविल कार्यवाही में अधिक सद्भावना बचाव नहीं होगा।


निजता का अधिकार बनाम लोकप्रिय व्यक्ति- भारतीय प्रेस परिषद् ने लोकप्रिय व्यक्तियों के निजता के अधिकार और सार्वजनिक हित तथा सार्वजनिक महत्व की सूचना तक पहुँचने के प्रेस के अधिकार के मध्य संतुलन प्राप्त करने के लिये मार्गनिर्देश बनाये हैं। राट्रीय और अंतर्राट्रीय स्तर तथा दिल्ली में अप्रैल 1998 में प्रेस परिषदों के विश्व संघ के सम्मेलन में हुई गरमा गरम बहस में बल दिया गया कि इस संबंध में तीन प्रतियोगी संवैधानिक मूल्यों के मध्य सामंजस्य स्थापित करने की आवश्यकता है,
अर्थातः.क, एक व्यक्ति का निजता का अधिकार,

ख, प्रेस की स्वतंत्रता, और

ग, जनहित में लोकप्रिय व्यक्तियों के बारे में जानने का लोगों का अधिकार।


परिषद् ने इस मामले पर रिपोर्ट तैयार की है और निम्नानुसार मार्गनिर्देश बनाये है -


निजता का अधिकार अनुल्लघंनीय मानवाधिकार है। हालाँकि निजता की डिग्री स्थिति और एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति के लिये अलग-अलग होती है। सार्वजनिक व्यक्ति जोकि जनता के प्रतिनिधि के रूप में कार्य करते हैं, प्राइवेट व्यक्ति के समान निजता की वही डिग्री पाने की आशा नहीं कर सकते। उनके कार्य और आचरण जनहित में होता है। जनहित, जनता की रूचि से अलग रखा जा रहा है, यदि प्राइवेट भी किये जायें, तब भी प्रेस के माध्यम से लोगों की जानकारी में लाये जायें। इसके अनुरूप यह सुनिश्चित करना प्रेस की ड्यूटी है कि सार्वजनिक व्यक्ति के सार्वजनिक हित के ऐसे कार्यों और आचरण के बारे में सूचना सही तरीकों से प्राप्त की जाती है, समुचित रूप से सत्यापित करने और तत्पश्चात सटीक रिपोर्ट दी जाती है। लागों की निगाह से दूर किये कार्यों के बारे में सूचना प्राप्त करने के लिये, प्रेस से निगरानी वाले तरीके की आशा नहीं की जाती है। जहाँ से यह आशा की जाती है कि लोकप्रिय व्यक्तियों को तंग न करें, वहीं लोकप्रिय सार्वजनिक व्यक्तियों से भी यह आशा की जाती है कि वे अपनी कार्यप्रणाली में अधिक खुलापन लायें तथा जनता को उनके प्रतिनिधियों के कार्यों के बारें में सूचित करने की प्रेस की ड्युटी को पूरा करने में प्रेस को सहयोग दें।


प्रेस मार्गनिर्देश और नीति निर्माण-


परिषद् ने मार्गनिर्देश जारी किये है और प्रेस तथा लोगों से सम्बंद्ध विभिन्न मामलों पर नीति रूपरेखा की सिफारिश की। इसके अतिरिक्त जहाँ कहीं भी गंभीर स्थिति पैदा हुई जिसमें प्रेस से संयम और सावधानी के साथ कार्य करने की आशा की गई वहाँ परिषद् के अध्यक्ष, वक्तव्यों के माध्यम से प्रेस का मार्गदर्शन करते रहे हैं। जब कभी भी सुनियोजित बृहत हमले किये गये, तब इन्होंने ऐसे वक्तव्यों के माध्यम से तीव्र प्रतिक्रिया भी की।

1969 में, परिषद् ने सांप्रदायिक संबंधों से सम्बद्ध मामलों पर रिपोर्टिंग और टिप्पणियाँ करने में नियमों और स्तरों को निर्दिट करते हुए 10-सूत्री मार्गनिर्देश जारी किये। सुविस्तार के बिना मार्गनिर्देशों में यह सूचीबद्ध और स्पट किया गया कि पत्रकारिता औचित्य और नीति के विरूद्ध क्या आपत्तिजनक होगा, अतः उससे बचना चाहिए। संलग्नक बी, ख,

पुनः 1990 में अयोध्या की घटनाओं को देखते हुए, परिषद् ने 1969 के मार्गनिर्देशों को दोहराते हुए, नये अनुभव के प्रकाश में अन्य 12 सूत्री मार्गनिर्देश जारी किये। परिषद् ने कहा कि इसमें रेखांकित सिद्धांत प्रशिक्षण की अवस्था से लेकर मीडिया के प्रत्येक स्तर पर अंतर्निविट किये जाने चाहिए। इन सिद्धांतों संलग्नक बी-2 ने प्रेस और राज्य दोनों के लिये कुछ कार्य करने और कुछ कार्य न करने निर्दिट किये।

परिषद् ने पिछले वर्षों में राट्रपति, प्रधानमंत्री आदि के विदेशी दौरे पर उनके साथ जाने के लिये पत्रकारों के चयन, विज्ञापनों अखबारी कागज़, मान्यता के नियमों जैसे कुछ विायों के बारे में नीति रूपरेखा का निर्माण किया है।

जैसाकि पहले विवेचित किया गया है, परिषद् ने, अक्टूबर 1982 में अपनी बैठक में लिये गये निर्णय के पश्चात अपने अधिनिर्णयों के दो संकलन, मामलों के समान सैट के अंत में अधिनिर्णयों को रेखांकित करके सिद्धांत देते हुए पत्रकारिता नीति के उल्लंघन और प्रेस की स्वतंत्रता के उल्लंघन पर प्रकाशित किये।

Tuesday, March 2, 2021

ನಾವೆಲ್ಲರೂ ತನ್ವೀರ್ ಸೈತ್ ಸಹಬ್ ಅವರೊಂದಿಗೆ ನಿಲ್ಲುತ್ತೇವೆ

ನಾವೆಲ್ಲರೂ ತನ್ವೀರ್ ಸೈತ್ ಸಹಬ್ ಅವರೊಂದಿಗೆ ನಿಲ್ಲುತ್ತೇವೆ

ತನ್ವೀರ್ ಸೈಟ್ ನಿರ್ಧಾರದಲ್ಲಿ ಏನು ತಪ್ಪಾಗಿದೆ :- 


ಯಾವುದೇ ಪಕ್ಷದ ಕಾರಣದಿಂದಾಗಿ ತೆಗೆದುಕೊಳ್ಳಲಾದ
ಮೈಸೂರಿನಲ್ಲಿ ಮೇಯರ್ ನಿರ್ಧಾರ ಸಂಪೂರ್ಣ ಬಹುಮತ,
2018 ರ ಅಸೆಂಬ್ಲಿ ಚುನಾವಣೆಯ ಸಂದರ್ಭದಲ್ಲಿ ಮೂರು ಪಕ್ಷಗಳು ಆ ಬಿಜೆಪಿಗೆ 104 ಸ್ಥಾನಗಳನ್ನು ಪಡೆದವು, ಅಧಿಕಾರದಲ್ಲಿದ್ದ ಕಾಂಗ್ರೆಸ್ 80 ಆಸನಗಳು ಮತ್ತು ಜೆಡಿ (ಎಸ್) 37 ಮಾತ್ರ, ಆ ಸಮಯದಲ್ಲಿ ಕಾಂಗ್ರೆಸ್ ಹಿರಿಯ ನಾಯಕರು ಮತ್ತು ಹೈಕಮಾಂಡ್ 37 ಆಸನಗಳನ್ನು ಪಡೆದ ಜೆಡಿ (ಎಸ್) ಸುಪ್ರೀಮೋ ಅವರನ್ನು ಬೆಂಬಲಿಸಲು ನಿರ್ಧಾರ ತೆಗೆದುಕೊಳ್ಳುತ್ತಾರೆ ಕರ್ನಾಟಕ ರಾಜ್ಯದ ಎಚ್ಡಿಕೆ ಮುಖ್ಯಮಂತ್ರಿ ಎಂದು ಘೋಷಿಸಿದರು ಮೈಸೂರು ಕೌನ್ಸಿಲ್ನ ಮೇಯರ್ ಯಾವುದೇ ಪಕ್ಷವು ಸಂಪೂರ್ಣ ಬಹುಮತವನ್ನು ಹೊಂದಿಲ್ಲ 3 ಅಭ್ಯರ್ಥಿಗಳನ್ನು ಕಣಕ್ಕಿಳಿಸಿದೆ, ಅದೇ ನಿರ್ಧಾರವನ್ನು ಪುನರಾವರ್ತಿಸಲಾಗಿದೆ, ನಿರಂತರವಾಗಿ 5 ನೇ ಅವಧಿಯ ಶಾಸಕ ಮತ್ತು ಮಾಜಿ ಸಚಿವ ಶ್ರೀ ತನ್ವೀರ್ ಸೈಟ್ ಅವರನ್ನು ಗೆದ್ದ ನಾಯಕ, ಅವರು ದಿವಂಗತ ದಿವಂಗತ ಶ್ರೀ ಅಜೀಜ್ ಸೈಟ್ ಅವರ ಪುತ್ರ, 


Hanif Kambi ಆದ್ದರಿಂದ ನಾವೆಲ್ಲರೂ ತನ್ವೀರ್ ಸೈತ್ ಸಹಬ್ಅವರೊಂದಿಗೆ
ನಿಲ್ಲುತ್ತೇವೆ

ನಾವೆಲ್ಲರೂ ತನ್ವೀರ್ ಸೈತ್ ಸಹಬ್ ಅವರೊಂದಿಗೆ ನಿಲ್ಲುತ್ತೇವೆ

ನಾವೆಲ್ಲರೂ ತನ್ವೀರ್ ಸೈತ್ ಸಹಬ್ ಅವರೊಂದಿಗೆ ನಿಲ್ಲುತ್ತೇವೆ

ತನ್ವೀರ್ ಸೈಟ್ ನಿರ್ಧಾರದಲ್ಲಿ ಏನು ತಪ್ಪಾಗಿದೆ :- 


ಯಾವುದೇ ಪಕ್ಷದ ಕಾರಣದಿಂದಾಗಿ ತೆಗೆದುಕೊಳ್ಳಲಾದ
ಮೈಸೂರಿನಲ್ಲಿ ಮೇಯರ್ ನಿರ್ಧಾರ ಸಂಪೂರ್ಣ ಬಹುಮತ,
2018 ರ ಅಸೆಂಬ್ಲಿ ಚುನಾವಣೆಯ ಸಂದರ್ಭದಲ್ಲಿ ಮೂರು ಪಕ್ಷಗಳು ಆ ಬಿಜೆಪಿಗೆ 104 ಸ್ಥಾನಗಳನ್ನು ಪಡೆದವು, ಅಧಿಕಾರದಲ್ಲಿದ್ದ ಕಾಂಗ್ರೆಸ್ 80 ಆಸನಗಳು ಮತ್ತು ಜೆಡಿ (ಎಸ್) 37 ಮಾತ್ರ, ಆ ಸಮಯದಲ್ಲಿ ಕಾಂಗ್ರೆಸ್ ಹಿರಿಯ ನಾಯಕರು ಮತ್ತು ಹೈಕಮಾಂಡ್ 37 ಆಸನಗಳನ್ನು ಪಡೆದ ಜೆಡಿ (ಎಸ್) ಸುಪ್ರೀಮೋ ಅವರನ್ನು ಬೆಂಬಲಿಸಲು ನಿರ್ಧಾರ ತೆಗೆದುಕೊಳ್ಳುತ್ತಾರೆ ಕರ್ನಾಟಕ ರಾಜ್ಯದ ಎಚ್ಡಿಕೆ ಮುಖ್ಯಮಂತ್ರಿ ಎಂದು ಘೋಷಿಸಿದರು ಮೈಸೂರು ಕೌನ್ಸಿಲ್ನ ಮೇಯರ್ ಯಾವುದೇ ಪಕ್ಷವು ಸಂಪೂರ್ಣ ಬಹುಮತವನ್ನು ಹೊಂದಿಲ್ಲ 3 ಅಭ್ಯರ್ಥಿಗಳನ್ನು ಕಣಕ್ಕಿಳಿಸಿದೆ, ಅದೇ ನಿರ್ಧಾರವನ್ನು ಪುನರಾವರ್ತಿಸಲಾಗಿದೆ, ನಿರಂತರವಾಗಿ 5 ನೇ ಅವಧಿಯ ಶಾಸಕ ಮತ್ತು ಮಾಜಿ ಸಚಿವ ಶ್ರೀ ತನ್ವೀರ್ ಸೈಟ್ ಅವರನ್ನು ಗೆದ್ದ ನಾಯಕ, ಅವರು ದಿವಂಗತ ದಿವಂಗತ ಶ್ರೀ ಅಜೀಜ್ ಸೈಟ್ ಅವರ ಪುತ್ರ, 


Hanif Kambi ಆದ್ದರಿಂದ ನಾವೆಲ್ಲರೂ ತನ್ವೀರ್ ಸೈತ್ ಸಹಬ್ಅವರೊಂದಿಗೆ
ನಿಲ್ಲುತ್ತೇವೆ

Thursday, February 25, 2021

TRAVELERS PLEASE READ THIS BEFORE YOU POST YOUR QUERY:


Requirement of RT-PCR Test report on arrival to Karnataka, by any mode of travel, is applicable for those travelling from Kerala and Maharashtra . For the rest of travelers from other States to Karnataka, there are No specific guidelines nor have to apply for any entry pass[ Seva Sindhu]. This is from Immediate effect.

Note : Report should be within last 72 hours at the time of Arrival.

If any body had Question like : 

What if I'm coming through Kerala for a short period ?
Yes sir/mam the same rule applies, you need to have RT-PCR test report with you (Note negative reports only)

What if I'm coming through Maharashtra for a short period ?
Yes sir/mam the same rule applies, you need to have RT-PCR test report with you (Note negative reports only)

What if I'm transiting through the above mentioned states?
Contact health department of Karnataka (Emergency Medical Support : 
104 / 97456-97456 
Apthamitra Helpline : 14410 
reference contacts their might be different numbers too)

What if I'm traveling in night ?
Irrespective of the timing you need to have RT-PCR report with you.

Do you need to have RT-PCR Report for kids as well ?
There are No age-based exemptions have been declared

For Any Emergency Help Regarding Please Contact Health Department

TRAVELERS PLEASE READ THIS BEFORE YOU POST YOUR QUERY:


Requirement of RT-PCR Test report on arrival to Karnataka, by any mode of travel, is applicable for those travelling from Kerala and Maharashtra . For the rest of travelers from other States to Karnataka, there are No specific guidelines nor have to apply for any entry pass[ Seva Sindhu]. This is from Immediate effect.

Note : Report should be within last 72 hours at the time of Arrival.

If any body had Question like : 

What if I'm coming through Kerala for a short period ?
Yes sir/mam the same rule applies, you need to have RT-PCR test report with you (Note negative reports only)

What if I'm coming through Maharashtra for a short period ?
Yes sir/mam the same rule applies, you need to have RT-PCR test report with you (Note negative reports only)

What if I'm transiting through the above mentioned states?
Contact health department of Karnataka (Emergency Medical Support : 
104 / 97456-97456 
Apthamitra Helpline : 14410 
reference contacts their might be different numbers too)

What if I'm traveling in night ?
Irrespective of the timing you need to have RT-PCR report with you.

Do you need to have RT-PCR Report for kids as well ?
There are No age-based exemptions have been declared

For Any Emergency Help Regarding Please Contact Health Department

Thursday, February 18, 2021

बीदर के सहायक आयुक्त ने कोविशील्ड वैक्सीन लिया

16-फरवरी 2021 : 
कर्नाटक राज्य
बीदर:


 गरिमा पंवारा COVSHIELD वैक्सीन का उपयोग

गरिमा पंवार सहायक आयुक्त ने 16 फरवरी को ओल्ड सिटी बीदर के 100 bed वाले अस्पताल में कोविशिल्ड वैक्सीन प्राप्त की।

कोविशील्ड वैक्सीन सुरक्षित है, इस वैक्सीन से कोई दुष्प्रभाव नहीं है। सहायक आयुक्त गरिमनपंवर ने कहा कि पहले से ही पहचाने गए विभागों के कर्मचारियों को कोविद वैक्सीन मिलनी चाहिए।
मुझे कोविशील्ड वैक्सीन मिली। स्वास्थ्य पर कोई प्रतिकूल प्रभाव नहीं पड़ता है।सभी प्रमुख विभागों के अधिकारी और कर्मचारी
इससे पहले कि उन्हें कोविशील्ड वैक्सीन के महत्व के बारे में पता हो, उन्हें टीका लगाया जाना चाहिए।

खुसरू अहमद बीदर

बीदर के सहायक आयुक्त ने कोविशील्ड वैक्सीन लिया

16-फरवरी 2021 : 
कर्नाटक राज्य
बीदर:


 गरिमा पंवारा COVSHIELD वैक्सीन का उपयोग

गरिमा पंवार सहायक आयुक्त ने 16 फरवरी को ओल्ड सिटी बीदर के 100 bed वाले अस्पताल में कोविशिल्ड वैक्सीन प्राप्त की।

कोविशील्ड वैक्सीन सुरक्षित है, इस वैक्सीन से कोई दुष्प्रभाव नहीं है। सहायक आयुक्त गरिमनपंवर ने कहा कि पहले से ही पहचाने गए विभागों के कर्मचारियों को कोविद वैक्सीन मिलनी चाहिए।
मुझे कोविशील्ड वैक्सीन मिली। स्वास्थ्य पर कोई प्रतिकूल प्रभाव नहीं पड़ता है।सभी प्रमुख विभागों के अधिकारी और कर्मचारी
इससे पहले कि उन्हें कोविशील्ड वैक्सीन के महत्व के बारे में पता हो, उन्हें टीका लगाया जाना चाहिए।

खुसरू अहमद बीदर